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आ नो॑ अग्ने र॒यिं भ॑र सत्रा॒साहं॒ वरे॑ण्यम्। विश्वा॑सु पृ॒त्सु दु॒ष्टर॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā no agne rayim bhara satrāsāhaṁ vareṇyam | viśvāsu pṛtsu duṣṭaram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। नः॒। अ॒ग्ने॒। र॒यिम्। भ॒र॒। स॒त्रा॒ऽसाह॑म्। वरे॑ण्यम्। विश्वा॑सु। पृ॒त्ऽसु। दु॒स्तर॑म् ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:79» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:28» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह सभाध्यक्ष कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) दान देने वा दिलानेवाले सभाध्यक्ष ! आप (नः) हम लोगों के लिये (विश्वासु) सब (पृत्सु) सेनाओं में (सत्रासाहम्) सत्य का सहन करते हैं जिससे उस (वरेण्यम्) अच्छे गुण और स्वभाव होने का हेतु (दुष्टरम्) शत्रुओं के दुःख से तरने योग्य (रयिम्) अच्छे द्रव्यसमूह को (आभर) अच्छी प्रकार धारण कीजिये ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को सभाध्यक्ष आदि के आश्रय और अग्न्यादि पदार्थों के विज्ञान के विना सम्पूर्ण सुख प्राप्त कभी नहीं हो सकता ॥ ८ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे अग्ने सभाध्यक्ष ! त्वं नोऽस्मभ्यं विश्वासु पृत्सु सत्रासाहं वरेण्यं दुष्टरं रयिमाभर ॥ ८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (नः) अस्मभ्यम् (अग्ने) प्रदातः प्रदानहेतुर्वा (रयिम्) प्रशस्तद्रव्यसमूहम् (भर) (सत्रासाहम्) सत्यानि सह्यन्ते येन तम् (वरेण्यम्) प्रशस्तगुणकर्मस्वभावकारकम् (विश्वासु) सर्वासु (पृत्सु) सेनासु (दुष्टरम्) शत्रुभिर्दुःखेन तरितुं योग्यम् ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः सभाध्यक्षाश्रयेणाग्न्यादिपदार्थसंप्रयोगेण च विनाऽखिलं सुखं प्राप्तुं न शक्यत इति वेद्यम् ॥ ८ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांना सभाध्यक्ष इत्यादींच्या आश्रयाशिवाय व अग्नी इत्यादी पदार्थांच्या विज्ञानाशिवाय संपूर्ण सुख प्राप्त होऊ शकत नाही. ॥ ८ ॥